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जगत के कल्याण की कामना कर पूर्ण हुई श्रीराम कथा

जूनापीठाधीश्वर आचार्य ने दिया सिंहस्थ का आमंत्रण

रतलाम,07 दिसम्बर (इ खबरटुडे)। आम्बेडकर मांगलिक भवन परिसर में प्रभुप्रेमी संघ द्वारा आयोजित संगीतमय श्रीराम कथा का समापन जूनापीठाधीश्वर आचार्य व महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंदजी गिरि ने जगत के कल्याण की कामना करके किया। समापन बेला में स्वामीजी ने आगामी वर्ष में उज्जैन में होने वाले सिंहस्थ महाकुंभ का आमंत्रण भी यह कहकर दिया …म्हारा बारना खुला है, तू कब आएगा। उन्होंने रतलाम की मुक्तकंठ से यह कहकर प्रशंसा की कि वे रतलाम आकर अभिभूत हैं।
रामकथा के दौरान स्वामीजी ने सीता हरण, रावण वध और राम राज के प्रसंगो की मार्मिक व्याख्या करते हुए श्रीराम से मर्यादाओं को जीवन में उतारने का अव्हान किया। उन्होंने कहा कि संसार को बड़ा भवन बनाकर नहीं जीता जा सकता, लेकिन बड़ा मन बनाकर हर किसी को जीत सकते हैं। स्वामीजी ने कटाक्ष भी किया कि आज लोग राम को भूल गए हैं, सरकार ठाठ में और राम डाट में हैं। उन्होंने भक्तों से आव्हान किया कि वे लोगों को आदर देना सीखें, आदर का नाटक नहीं करें। मर्यादा का पालन पुत्र-पुत्रियों और अन्य के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए भी लागू करना चाहिए। मर्यादा भक्तों के लिए ही नहीं है, वरण भगवान भी मर्यादा में रहता है। इसका जीता जागता उदाहरण भगवान श्रीराम हैं। कथा के प्रारंभ में मुख्य यजमान सुरेशचंद्र अग्रवाल, नीता अग्रवाल ने पोथी पूजन किया। स्वामीजी का स्वागत डॉ. विक्रांत भूरिया, अशोक रेवाशंकर पंड्या, प्रमोद व्यास, जयेश झालानी, मोहनलाल भट्ट ने किया। आरती मोहनलाल मिंडिया, नारायणलाल शर्मा, तरणी व्यास, चंदाराजू सोनी, प्रदीप सोनी, लल्नसिंह ठाकुर, दीपक पंत, विक्की भाई जनरेटरवाला, पूर्व मंत्री हिम्मत कोठारी सहित कई प्रभुप्रेमियों ने की। इस मौके पर प्रभुप्रेमी संघ की ओर से रामेश्वर खंडेलवाल, मनोहर पोरवाल, रणजीतसिंह राठौर व हरीश सुरोलिया ने शॉल, साफा व श्रीफल से अभिनंदन किया। सनातन धर्मसभा, कालिका माता सुंदरकांड मंडल, समन्वय परिवार की ओर से भी स्वामीजी का अभिनंदन किया गया। संचालन पंडित अश्विन शास्त्री ने किया।

समापन बेला में दिया ज्ञान

-कथा विसर्जन का दिन है तो अपनी बुराईयों को विसर्जित करने का संकल्प लें।
-मनुष्य की पहली प्राथमिकता आत्म सिद्धि और सत्य की उपलब्धि होना चाहिए।
-मेरा राम, मेरी सीता सर्वत्र है। यह आत्मानुभूति ही वास्तविक ज्ञान है।
-रामचरित मानस में भक्ति की अद्भुत परिभाषा यह है कि वह सर्वत्र और स्वतंत्र है।
-भक्ति के कारण ही पत्थर में भी परमात्मा के दर्शन होते हैं।
-भक्ति का जागरण संत्संग से ही होता है।
-भक्ति का एक बड़ा दृष्टिकोष यह है कि उसका कोई पार नहीं है।
-मीरा ने भक्ति को नई फिलोसॉफी दी है, जिसमें उसे जहर में भी भगवान ही नजर आए।
-प्रसाद हाथ में हो तो पॉजीटिविटी आती है।
-अपने सद्कर्मों को सदैव गोपनीय बनाओ।
-राम और कृष्ण का इतना भजन करो कि मुख से गीता निकलने

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